Kāmāyanī-rahasyaIṇḍiyana Presa (Pablikeśansa), 1963 - 531 էջ |
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अधिक अपनी अपने अब अर्थात् अलंकार अलङ्कार आवेग इस प्रकार उत्पन्न उनके उस उसकी उसके उसे एक ओर कर करता करती है करते हैं करने का काम किन्तु किया किसी की कुछ के कारण के भाव अभिव्यक्त के लिए के समान के साथ को कोई क्या गया है गयी चेतना छन्द छेकानुप्रास जब जल जाता है जाती जीवन जैसे तक तथा तात्पर्य तुम तो था थी थे दृष्टि ध्वनि नहीं नारी ने पद्य पर प्रकट प्रकृति प्रतीत प्रलय प्रेम फिर भाव अभिव्यक्त हैं भी है मधुर मन मनु मनु के मुझे में मेरी मेरे मैं यह यहाँ यही या रहा है रही रूप रूपक लज्जा वह विषाद वे वैसे ही व्याख्या शब्दार्थ श्रद्धा संकेत समय सी सुख सुन्दर से सौन्दर्य स्मृति हिमालय ही हुआ है हुई हुए हूँ हृदय है अतः है और है कि है क्योंकि हो गया हो जाता होकर होता है होती होने